Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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अथ मायोपदेशादितिसूचनासूत्रं वितन्यते । अक्षपादमते किल पोडश पदार्था:-"प्रमाणप्रगेयसंशयप्रयोजनNष्टान्तसिद्धान्तावयवतर्कनिर्णयवादजल्पवितण्डाहेत्वाभासच्छलजातिनिग्रहस्थानानां तलशानानिःश्रेयगाधिगमः"
इति वचनात् । न चैतेषां व्यस्तानां समस्तानां ना अधिगमो निःश्रेयसावाप्तिहेतुः । न होगेनैन निगा विहिरोन ज्ञानमात्रेण मुक्तिर्युक्तिमती । असगग्रसामग्रीकत्वात् । विघटितकचारशेन भनीपितनगरपाशिवत् । १ अब ' मायोपदेशात् ' इरा सूचनासूत्रको विस्तृत करते हैं गर्मात् मूलगे जो गागा उगरेशरो ऐसा गित firit उसको यहां विस्ताररो कहते हैं। अक्षपादके गत (नेगाभिक गतर्ग)" अगाण १, प्रमेय २, रांग २, प्रयो , सिद्धान्त ६, अवयव ७, तर्फ ८, निर्णय २, नाद १०, जलग ११, गिता १२, लाभारा १३, ५० १.१, गा ?" और निग्रहस्थान १६, इन राबोंके तत्त्वज्ञानरो गोक्षफी प्राशि होती है।" इसाचन सोला, १६ पदार्थ है । पर याpिrint माने हुए इन सोलह पदार्थोमसे व्यरत अर्थात् एक दो चार आदि थोरो पदार्चाका जान लेना | इन स सो. rifer जान लेना गी गोक्षकी प्राप्तिम कारण नहीं है । गोंकि गियासे रहित केवल एक ज्ञानरोगी गोमाफी मासिका सीना गतिको ना धारण करता है; कारण कि;-पूर्णसागमीरो ( रापूर्ण कारणोरो) शन्यो । ।
हिटे गुण पहियको पार करनेवाले रथसे मनोवांछित नगरकी प्राप्ति नहीं होती है । भावार्थ-याविष्फ जो सोला,' पदापि तलाशातरी गोशकी प्राकिलोना कहते हैं, सो ठीक नहीं है । क्योंकि जैसे रथके दो पहियोंगरी एक या दा ना हो तो उसका परिवाले रशंग मेरो मनुष्य अपने चाहे तुप नगरको नहीं जाता है, इसी प्रकार; इन शोला पदाशी जानलेने गागरोही आगाको गोजी पाiिr नहीं होती है। किन्तु ज्ञान और फिया इन दोनोंके होनेसे की जामाको गोश मिलता।
न च वाच्यं न खलु वयं क्रियां प्रतिक्षिपामः । किन्तु तत्त्वज्ञानपूर्णिकाया पानण्या मुक्तितुत्वमिनि मापनार्ग बज्ञानान्नि:-श्रेयसाधिगम इति ब्रूम इति । न यमीप संघते अपिज्ञाननिय गुहियाशितुगते। विशालात निक्रिययोः । न च वितथत्वमसिद्धम् । विचार्यमाणानां पोशानामनियामागत्वात् । माह र तावाहक्षणमित्थं सूत्रितम्-" अर्थोपलब्धिहेतुः प्रमाणम्” इति । विधारमहा । नापिलवं यदि निमित्तत्वमानं तत्सर्वकारकसाधारणमिति कर्डकर्मादपि प्रगाणलागः । अथ दिदि
སྐྱེ་བྱ