Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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स्याद्वाद मं.
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समवायेन समवेतं समवायेऽपि समवायत्वमेवं समवायान्तरेण संबन्धनीयं तदप्यपरेणेत्येवं दुस्तराऽनवस्थामहानदी । यहां पर तात्पर्य यह है कि, जैसे तुम्हारे मतमें पृथिवीत्वके संबंधसे पृथिवी है । और उस पृथ्वीमें जो पृथ्वीपना है, वह पृथि - बीका ही अस्तित्व नामक धर्म है, अन्य कोई दूसरा पदार्थ नहीं है । और उस पृथिवीत्वरूप अपने खरूपके साथ ही जो कोई पृथिवीका संबंध है, उसीको ' प्राप्त हुओंकी जो प्राप्ति है, वह समवाय है' इस वचनसे 'समवाय' ऐसा कहते है । इसीप्रकार 'समवायत्वके संबंधसे समवाय है' यह भी तुम क्यों नहीं मानते हो। क्योंकि उस समवायका भी समवायत्वरूप निजस्वरूपके साथ संबंध है ही । क्योंकि यदि समवायका समवायत्वके साथ संबंध न होगा तो स्वभावरहित होनेसे शशशृंग ( सुस्सेके सींग ) के समान समवाय भी अवस्तु ही हो जावेगा अर्थात् जैसे स्वभावरहित होनेके कारण शशशृग कोई पदार्थ नहीं है, इसी प्रकार खभावरहितपनेसे समवाय भी पदार्थ न रहेगा, इस कारण समवायका समवायत्वके साथ संबंध तुमको मानना ही होगा । और जब समवायका समवायत्वके साथ संबंध मानोगे तब इस समवायमें समवायत्व है, इस प्रकार कहनेसे समवाय में भी इहप्रत्यय युक्तिसे सिद्ध हो ही जावेगा । अतः जैसे पृथिवीमें पृथिवीत्व समवायसंबधसे समवेत ( मिला हुआ ) समवायत्वको दूसरे समवायसे संबंधित करना चाहिये । और उस दूसरे समवायमें जो समवायत्व है, उसको तीसरे समवायसे उसी प्रकार समवाय में भी संबंधित करना चाहिये । और इस प्रकार जब समवायमें समवायत्वको संबंधित करनेके लिये नया २ समवाय मानोंगे तब अनवस्थादोष नामक जो महानदी है, वह दुस्तर (दु खसे पार पानेवाली) हो जावेगी अर्थात् नये २ समवायोंका कभी अंत ही न आवेगा ।
एवं समवायस्यापि समवायत्वाभिसम्बन्धे युक्त्या उपपादिते साहसिक्यमालम्ब्य पुनः पूर्वपक्षवादी वदति । ननु पृथिव्यादीनां पृथिवीत्वादिसम्बन्धनिबन्धनं समवायो मुख्यस्तत्र त्वतलादिप्रत्ययाभिव्यङ्गयस्य सङ्गृहीतसकलांवान्तरजातिलक्षणव्यक्तिभेदस्य सामान्यस्योद्भवात् । इह तु समवायस्यैकत्वेन व्यक्तिभेदाऽभावेजातेरनुद्भूतत्वाद्गौणोऽयं युष्मत्परिकल्पित इहेतिप्रत्ययसाध्यः समवायत्वाभिसम्बन्धस्तत्साध्यश्च समवाय इति ।
इस प्रकार युक्तिसे समवायका भी समवायत्वके साथ संबंध है, यह सिद्ध कर चुकने पर फिर भी पूर्वपक्षवादी ( वैशेषिक ) साहसको धारण करके कहते है कि पृथिवी आदिके साथ पृथिवीत्व आदिका संबंध करानेका कारणभूत जो समवाय है, वह मुख्य है। क्योंकि उन पृथिवी आदिमें- 'त्व, तल ' इत्यादि तद्धितके प्रत्ययोसे जानने योग्य और पृथिवी आदिमें रहनेवाली जो समस्त
रा. जै. शा
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