Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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एव । इह तन्तुषु पट, इहात्मनि ज्ञानमिह घटे रूपादय इति प्रतीतेरुपलम्भात् । अस्य च प्रत्ययस्य केवलधर्मधय॑नालम्बनत्वादस्ति समवायाख्यं पदार्थान्तरं तद्धेतुः।इति पराशङ्कामभिसन्धाय पुनराह । इहेदमित्यस्ति मतिश्चवृत्ताविति । इहेदमिति इहेदमिति आश्रयाश्रयिभावहेतुक इह प्रत्ययो वृत्तावप्यस्ति समवायसंबन्धेऽपि विद्यते । चशब्दोऽपिशब्दार्थस्तस्य च व्यवहितसम्बन्धस्तथैव च व्याख्यातम् ।
अब “ समवायका ज्ञानमें प्रतिभासन कैसे नहीं होता है अर्थात् होता ही है । क्योंकि उस समवायका इहप्रत्यय सावधान ! ( प्रबल ) साधन है, अर्थात् समवायके विना इहप्रत्यय नहीं हो सकता है, इसकारण अर्थापत्तिसे समवाय सिद्ध होता है । और IMइन तंतुओंमें पट है, इस आत्मामें ज्ञान है तथा इस घटमें रूप आदिक हैं, इस प्रतीतिके प्राप्त होनेसे इहप्रत्यय तो अनुभवसे ही Kall
सिद्ध है । और यह इहप्रत्यय केवल धर्मके आधार भी नहीं है और केवल धर्मीके आधार भी नहीं है, इसकारण समवायनामक जो धर्म और धर्मीसे भिन्न एक तीसरा पदार्थ है, वही इहप्रत्ययका हेतु है अर्थात् — यहां यह है ' ऐसी प्रतीति न तो केवल धर्ममें ही होती है और न केवल धर्मीमें ही होती है. अतः समवाय ही इस प्रतीतिका कारण है । " इस प्रकार वादीकी शंकाको चित्तमें धारण करके ग्रन्थकार फिर कहते है कि, "इह" यहां " इदम्" यह "अस्ति" है । "इति" इसप्रकारकी "मतिः बुद्धि जो है सो"वृत्तौ" समवायसंबंधमें "" भी "अस्ति" है अर्थात आधार तथा आधेय ये दोनों है कारण जिसके | ऐसा इहप्रत्यय समवायसंबंधमें भी होता है। [ 'मतिश्च' यहां 'च' यह शब्द अपि शब्दके अर्थमें है, और उसका व्यवहितसंबंध | है, इसकारण यहां पर उसीरीतिसे इसकी व्याख्या की गई है ।]
इदमत्र हृदयम् । यथा-त्वन्मते पृथिवीत्वाभिसंवन्धात्पृथिवी तत्र पृथिवीत्वं पृथिव्या एव स्वरूपमस्तित्वाख्यं । नाऽपरं वस्त्वन्तरम् । तेन स्वरूपेणैव समं योऽसावभिसम्बन्धः पृथिव्याः स एव समवाय इत्युच्यते। "प्राप्तानामेव || प्राप्तिः समवायः” इति वचनात् । एवं समवायत्वाभिसम्बन्धात्समवाय इत्यपि किं न कल्प्यते । यतस्तस्याऽपि यत्समवायत्वं स्वस्वरूपं तेन सार्द्ध संवन्धोऽस्त्येव । अन्यथा निःस्वभावत्वात् शशविषाणवदवस्तुत्वमेव भवेत् ।। ततश्च इह समवाये समवायत्वमित्युल्लेखेन इहप्रत्ययः समवायेऽपि युक्त्या घटत एव । ततो यथा पृथिव्यां पृथिवीत्वं ।
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