Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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| काशकरूप स्वभाव भी समवायरूप ही है । और भी विशेष वक्तव्य यह है कि, जैसे इन समवायियों ( समवायके धारकों ) में समवाय है; ऐसी बुद्धि समवायके विना भी उत्पन्न हुई है, उसी प्रकार यदि तुम ' इस आत्मामें ज्ञान है' इस इहप्रत्ययरूप प्रतीतिको भी समवायके विना ही उत्पन्न हुई कह दो तो क्या दोष है ? अर्थात् समवायके बिना ही इस प्रत्ययका होना मान लेने में कोई भी दोष नही है ।
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आत्मामें ज्ञान है' ऐसे
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अथात्मा कर्त्ता, ज्ञानं च करणं, कर्तृकरणयोश्च वर्द्धकिवासीवद्भेद एव प्रतीतस्तत्कथं ज्ञानात्मनोरभेद इतिचेत् । न । दृष्टान्तस्यं वैषम्यात् । वासी हि वाह्यं करणं, ज्ञानं चाभ्यन्तरं तत्कथमनयोः साधर्म्यम् । न चैवं करणस्य | द्वैविध्यमप्रसिद्धम् । यदाहुर्लाक्षणिकाः – “करणं द्विविधं ज्ञेयं वाह्यमाभ्यन्तरं बुधैः । यथा लुनाति दात्रेण मेरुं गच्छति | चेतसा । १।” यदि हि किञ्चित्करणमान्तरमेकान्तेन भिन्नमुपदर्श्यते ततः स्याद्दृष्टान्तदान्तिकयोः साधर्म्यम् । न च तथाविधमस्ति । न च वाह्यकरणगतो धर्मः सर्वोऽप्यान्तरे योजयितुं शक्यते । अन्यथा दीपेन चक्षुषा देवदत्तः | पश्यतीत्यत्रापि दीपादिवच्चक्षुषोऽप्येकान्तेन देवदत्तस्य भेदः स्यात् । तथा च सति लोकप्रतीतिविरोध इति ।
शंका - आत्मा तो कर्ता है; ज्ञान करण है, - कर्त्ता और करणके बढई ( खाती ) और कुठारके समान भेद ही प्रतीत है; | अर्थात् जैसे बढईरूप कर्त्ता अपनेसे भिन्न कुठाररूप करणसे काष्टको छेदता है, उसी प्रकार आत्मारूप कती ज्ञानस्वरूप करणके द्वारा | पदार्थको जानता है, अतः आत्मा और ज्ञान ये दोनों भिन्न ही प्रतीतिके गोचर होते है । इस कारण ज्ञान तथा आत्मा, इन दोनोंके अभेद कैसे हो सकता है ? समाधान - यह कहना उचित नही है। क्योंकि दृष्टान्त विषम है । भावार्थ – कुठार तो वायकरण है। और ज्ञान अतरंग करण है; इस कारण इन दोनोंके समानता कैसे हो सकती है अर्थात् कुठाररूप वाह्यकरणके दृष्टान्तसे ज्ञानरूप अंत| रंगकरणको भिन्न सिद्ध नहीं कर सकते हो । और हमने जो दो प्रकारके करण कहे है; वे अप्रसिद्ध नहीं है । क्योंकि व्याकरणके | ज्ञाता जन कहते है कि, “ ज्ञानवानों को बाह्य और आभ्यन्तर ( अंतरंग ) रूपसे दो करण जानने चाहियें | जैसे देवदत्त दात्र ( दरांती ) से छेदता है और मनसे मेरुपर्वतको जाता है; यहां पर दात्र वाह्यकरण है और मन अंतरंग करण है । हां यदि तुमने
१ ख- पुस्तके ' दृष्टान्तस्यैव ' इति पाठ । २ ख- पुस्तके न चेदमिति पाठः ।