Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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इस विषयमें हम और भी विशेष कहते है कि, "जब तक वासनाको आदिलेकर समस्त आत्माके गुण अत्यंत नष्ट नहीं होवें; तब तक आत्माके दुखोंसे अत्यंत रहितता नहीं मानी जाती है । १ । धर्म और अधर्मके निमित्तसे ही सुख तथा दुःखकी उत्पत्ति होती है अर्थात् धर्मसे सुख और अधर्मसे दुःख होता है, इसकारण संसाररूपी गृहके ये दोनों धर्म-अधर्म ही मूलभूत ( आधार रूप) स्तंभ ( थंभे ) है । २ । धर्म तथा अधर्म, इन दोनोंका नाश होनेपर इन धर्म-अधर्मके कार्यरूप जो शरीर आदि उपद्रव है ||४|| वे नहीं रहते है, इसकारण आत्माके सुख और दुःख नहीं रहता है, अत एव वह आत्मा मुक्त कहा जाता है । ३ । इच्छा, द्वेष और || प्रयत्न आदिरूप जो विशेष गुण है, इनका भोगायतन ( शरीर ) ही कारण रूप है, इस कारण नष्ट हो गया है भोगायतन जिसके | |ऐसा अर्थात् शरीररहित ऐसा आत्मा, उन इच्छा, द्वेष आदिसे भी संबंधित नहीं होता है । भावार्थ-शरीरसे इच्छा, द्वेष आदि || उत्पन्न होते है, और आत्मा शरीर रहित हो चुका; अत. आत्मा इच्छा आदिसे भी रहित रहता है । ४ । सो इस पूर्वोक्त सी कथनके अनुसार बुद्धि आदि आत्माके नौ ९ विशेषगुणोंका जो मूलसे नाश है; वह मोक्ष है, यह स्थित ( सिद्ध ) हो चुका । ५ ।। । यदि प्रश्न करो कि; उस अवस्थामें अर्थात् मुक्तदशामें कैसा आत्मा रह जाता है; तो उत्तर यह है कि अपने एक खरूपमें ही |स्थित तथा समस्त गुणोंसे रहित ऐसा आत्मा मुक्त अवस्थामें रहता है। ६ । इसी कारण बुद्धिमान मनुष्य संसारबंधनके आधीन || अर्थात् संसारी अवस्थामें नियमसे होनेवाले जो दुःख तथा क्लेश आदि है; उनसे अदूषित ( रहित ) तथा ऊर्मिषट्क ( काम१, क्रोध २, लोभ ३, गर्व ४, दम्भ ५, और हर्ष ६, इन छः ऊर्मियों ) को उलंघ गया ऐसा अर्थात् ऊर्मिषट्कसे रहित ऐसा इस मुक्त आत्माका स्वरूप कहते हैं। ७॥"
तदेतदभ्युपगमत्रयमित्थं समर्थयद्भिरत्वदीयैस्त्वदाज्ञावहिर्भूतैः कणादमतानुगामिभिः सुसूत्रमासूत्रितं सम्यगागमः प्रपञ्चितः। अथवा सुसूत्रमिति क्रियाविशेषणम् । शोभनं सूत्रं वस्तुव्यवस्थाघटनाविज्ञानं यत्रैवमासूत्रितं तत्त च्छास्त्रार्थोपनिवन्धः कृतः । इति हृदयम् । “सूत्रं तु सूचनाकारि ग्रन्थे तन्तुव्यवस्थयोः।” इत्यनेकार्थवचनात् ।।
सो इसप्रकार इन पूर्वोक्त तीन मतोंको समर्थित ( पुष्ट ) करते हुए " अत्वदीयैः " आपकी आज्ञासे बहिर्भूत अर्थात् आपकी आज्ञाको न माननेवाले ऐसे कणादऋषीके मतानुसारियोंने अर्थात् वैशेषिकोंने “ सुसूत्रं" अच्छा शास्त्र " आसूत्रितं ।" गूंथ |
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