Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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स्थाद्वादमं.
॥२०॥
'समवायका नियतसंबन्धियोंके साथ संबन्ध नहीं है। इस कथनसे संबन्धका अभाव आया । अर्थात् उपकार और समवायके भेदलाव.शा.. माननेमें इन दोनोंके संयोगसंबंध तो हो नहीं सकता । क्योंकि वह द्रव्योंके ही होता है और समवाय संबंध मानें तो वह व्यापक है इसलिये नियतसंबधियोंके साथ उसका संबंध नही हो सकता है । इस कारण जो एकान्त नित्य पदार्थ है, वह क्रमसे अर्थक्रियाको नहीं करता है । यह सिद्ध हुआ । Nil नाप्यक्रमेण । नोको भावःसकलकालकलाकलापभाविनीयुगपत् सर्वाः क्रियाः करोतीति प्रातीतिकम् । कुरुतां
वा तथापि द्वितीयक्षणे किं कुर्यात् । करणे वा क्रमपक्षभावी दोषः । अकरणे त्वर्थक्रियाकारित्वाऽभावादवस्तुत्वप्रसङ्गः । इत्येकान्तनित्यात्क्रमाक्रमाभ्यां व्याप्तार्थक्रियाव्यापकानुपलब्धिवलाद्व्यापकनिवृत्तौ निवर्तमाना स्वव्याप्यमर्थक्रियाकारित्वं निवर्तयति । अर्थक्रियाकारित्वं च निवर्तमानं स्वव्याप्यं सत्त्वं निवर्तयति । इति नैकान्तनित्यपक्षो युक्तिक्षमः। | अब यदि कहो कि नित्य पदार्थ अक्रमसे अर्थक्रियाको करता है तो यह भी सिद्ध नहीं होता । क्योंकि 'एक पदार्थ समस्त कालकी कलाओंमें होनेवाली अर्थ क्रियाओंको एक ही समयमें कर लेता है। यह कथन प्रतीतिमें नहीं आता है । अथवा पदार्थ एक समयमें अर्थक्रियाओंको करै भी तो हम पूछते है कि, वह पदार्थ दूसरे क्षणमें क्या करेगा। यदि यह कहो कि–पदार्थ दूसरे क्षणमें भी अर्थक्रियाओंको ही करता है । तब तो जो दोष क्रमसे अर्थक्रिया करनेरूप पक्षमें होता है वही यहां भी होगा।
अर्थात् प्रथम क्षणमें सब अर्थ क्रियाओंको करके अपनी व्यर्थता न होनेके लिये जो वह दूसरे क्षणमें फिर भी उन्ही अर्थक्रियामाओको करता है इस कारण उस पदार्थके असमर्थताकी प्राप्ति होगी। यदि कहोकि 'वह दूसरे क्षणमें कुछ भी नहीं करता है।
तो दूसरे क्षणमे अर्थक्रियाकारित्वका अभाव होनेसे उस नित्य पदार्थक अवस्तुताका प्रसग होगा । इस प्रकार एकान्तनित्यपदार्थसे है क्रम और अक्रम करके व्याप्त जो अर्थक्रिया है, वह व्यापकके न मिलनेसे व्यापकके दूर होनेपर नष्ट होती हुई अपना व्याप्य जो अर्थक्रियाकारित्व है, उसको नष्ट करती है और नाशको प्राप्त होता हुआ जो अर्थक्रियाकारित्व है वह अपनेमें व्याप्य (रहनेवाला)
॥२०॥ जो सत्त्व है, उसको नष्ट करता है। भावार्थ-नित्य पदार्थसे जो अर्थक्रिया होती है, वह या तो क्रम करके हो और या अक्रम करके हो । और नित्यपदार्थसे 'क्रम तथा अक्रम करके अर्थक्रिया होती है, इस विषयका पूर्वोक्त प्रकारसे खंडन हो चुका है। इसलिये
न मिलनताका मसग
"है। भावारनाशको