Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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साद्वादमं.
पीछे इस हेतुको कहा है। एवं यह कार्यत्वहेतु प्रकरणसम ( सत्प्रतिपक्ष ) भी नहीं है। क्योंकि, इसके प्रतिकूल धर्मको अर्थात् जिस कर्तृत्वधर्मको यह कार्यत्वहेतु सिद्ध करता है, उस कर्तृत्वधर्मसे प्रतिकूल जो अकर्तृत्व धर्म है, उसको सिद्ध करनेमें समर्थ | कोई प्रत्यनुमान नहीं है। . . ... ..... ___नं च वाच्यमीश्वरः पृथ्वीपृथ्वीधरादेर्विधाता न भवति । अशरीरत्वात् । निर्वृत्तात्मवत् । इति प्रत्यनुमान
तद्बाधकमिति । यतोऽत्रेश्वररूपो धर्मी प्रतीतोऽप्रतीतो वा प्ररूपितः। न तावदप्रतीतो हेतोराश्रयासिद्धिप्रसकशात् । प्रतीतश्चेद्येन प्रमाणेन स प्रतीतस्तेनैव किं स्वयमुत्पादितस्वतनुर्न प्रतीयते । इत्यतः कथमशरीरत्वम् । तस्मान्निरवद्य एवायं हेतुरिति । .
:. . ॥ शंका-" ईश्वर जो है, सो पृथ्वी, पर्वत आदिका कर्त्ता नहीं हो सकता है। क्योंकि, शरीररहित है । मुक्त आत्माके
समान अर्थात् जैसे मुक्त आत्मा शरीररहित होनेसे पृथिवी आदिका कर्ता नहीं होता है, उसी प्रकार ईश्वर भी अशरीर है,। । इसकारण पृथिवी आदिका कर्त्ता नहीं हो सकता है।" यह प्रत्यनुमान जगत्रूप धीमें ईश्वरकर्तृत्व धर्मका बाधक है। समाधानपू यह न कहना चाहिये । क्योंकि, " ईश्वर पृथिवी आदिका कर्त्ता नहीं हो सकता है" इत्यादि इस अनुमानके प्रयोगमें तुमने
जो ईश्वररूप धर्मीका कथन किया है, सो प्रतीत है। वा अप्रतीत है । यदि कहो कि, अप्रतीत ( नहीं जाने हुए ) ईश्वर धर्मीका ॐ कथन किया है, तब तो हेतुके आश्रयासिद्धि दोषका प्रसंग आवैगा अर्थात् जब धर्मी ही अप्रतीत है, तब अशरीरत्व
हेतु किसमें रहेगा। और यदि कहो कि, हमनें प्रतीत ('जाने हुए) ईश्वरधर्मीका निरूपण किया है, तो जिस प्रमाणसे तुमने उस ईश्वरको जाना है, उसी प्रमाणसे तुम उस ईश्वरको खय (अपने आप ही) उत्पन्न किये हुए शरीरका धारक भी क्यों नहीं
जान लेते हो अर्थात् जिस प्रमाणसे तुमने ईश्वर जाना है, उसी प्रमाणसे तुम यह भी मान लो कि, ईश्वरने खयं अपना शरीर वनाछ कर फिर जगतको बनाया है । और जब ईश्वरको शरीरका धारक मानलिया, तब अशरीरपना कहां रहा। इस कारण हमने जो ४ कार्यत्वहेतु दिया है, वह निर्दोष ही है। भावार्थ-असिद्ध, १ विरुद्ध,२'अनैकान्तिक, ३ कालात्ययापदिष्ट ४ और सत्प्रपतिपक्ष, ५. ये जो पांच हेतुके दोष है, इनमेंसे हमारे कहे हुए कार्यत्वहेतुमें कोई भी दोष नहीं है, इस कारण ईश्वर जगतका कर्ता
है यह सिद्ध हो गया ।
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