Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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स.
स्थाद्वादम.
.शा.
॥२७॥
धारक आपके भी जो खिल अर्थात् हल आदिसे नहीं गोदे हुए क्षेत्र हुए सो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है । क्योंकि, जगतमें अन्ध
कारमें फिरनेवाले घूघूआदि दिनान्ध पक्षियोंके समूहको सूर्यकी किरणें भ्रमरीके चरणोंके समान पीतवर्णकी धारक दीख पडती है।" ॐ भावार्थ-जैसे चतुर किसानद्वारा बोया हुआ बीज अयोग्यक्षेत्रमें फलदायी नहीं होता है, उसी प्रकार जब भगवान्ने सम्यग्धर्मका 2 उपदेश दिया तब कितने ही अभव्योंको उस उपदेशने लाभ नहीं पहुंचाया। सो इस विषयमें कोई आश्चर्य नहीं । क्योंकि, जो ॐ सूर्यकी किरणें अंधकारको दूरकरके संपूर्ण भुवनमंडलमें प्रकाश कर देती है, वे ही सूर्यकी किरणें नेत्र बंद कियेहुए घूघू आदि पक्षिको भ्रमरी ( भोरी ) की टांगोंके समान कुछ कुछ पीली नजर आती है । १।" ____ अथ कथमिव तत्कुहेवाकानां विडम्बनारूपत्वमिति ब्रूमः। यत्तावदुक्तं परैः क्षित्यादयो बुद्धिमत्क
र्यत्वाद्घटवदिति । तदयुक्तम् । व्याप्तेरग्रहणात् । साधनं हि सर्वत्र व्याप्तौ प्रमाणेन सिद्धायां साध्यं गमयेदिति । सर्ववादिसंवादः। स चायं जगन्ति सृजन् सशरीरोऽशरीरो वा स्यात् । सशरीरोऽपि किमस्मदादिवदृश्यशरीर
विशिष्ट उत पिशाचादिवददृश्यशरीरविशिष्टः। प्रथमपक्षे प्रत्यक्षवाधः। तमन्तरेणापि च जायमाने तृणतरुपुरV न्दरधनुरभ्रादौ कार्यत्वस्य दर्शनात्प्रमेयत्वादिवत्साधारणानैकान्तिको हेतुः।
अब उन वैशेषिकोंके खोटे आग्रह बिडम्बनारूप कैसे हैं सो कहते है । प्रथम ही जो वैशेपिकोने यह अनुमानका प्रयोग कहा y है कि, 'पृथ्वी आदिक बुद्धिमानके बनाये हुए हैं, कार्यहोनेसे, घटके समान' सो ठीक नहीं है । क्योंकि, इस अनुमानमें व्याप्तिका
ग्रहण नहीं है। कारण कि, 'जब सब स्थलोंमें प्रमाणद्वारा व्याप्ति सिद्ध हो जाती है, तभी साधन साध्यको जनाता है' यह सब मतवालोंका कहना है । इसलिये हम पूछते है, कि तीन लोकको रचता हुआ वह यह तुम्हारा माना हुआ ईश्वर शरीरसहित है वा
शरीररहित है । अर्थात् ईश्वरने जगतको शरीर धारणकरके बनाया है ? वा विना शरीर धारणकिये बनाया है ? यदि कहो कि, 8 सशरीर है, तो क्या हम जैसोंके समान दृश्य ( दीखनेमे आनेवाला ) शरीरका धारक है ? अथवा पिशाच आदिके समान अदृश्य
शरीरका धारक है ? अर्थात् ईश्वरका शरीर हमारे शरीरकी तरह सबके दीखनेमें आता है, वा पिशाच आदिके शरीरके समान किसीके दीखनेमें नहीं आता है। यदि कहो कि, ईश्वर दृश्यगरीरका धारक है, तो प्रथम तो प्रत्यक्षसे बाधा होती है। अर्थात् ईश्वर देखनेमें नहीं आता है । और दूसरे उस ईश्वरके शरीरके व्यापारके विना भी उत्पन्न होते हुए घास, वृक्ष, इन्द्रधनुष तथा मेघ
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