________________
भतिष्ठा
पाठ
-MAHABHA
MRPROVALA
कुशल होय, दम दान शीलवान होय, इन्द्रियजेता, अरु देव गुरु ही है प्रमाण जाके ऐसा, शास्त्रका अर्थसंपत्तिकरि वादिननै जीतनेवाला, धर्मका | उपदेशमें प्रवीण, अरु क्षमावान, राजादिकमान्य अनेक नयका भागो, तप व्रत इनका अनुष्ठानसे पवित्र शरीरी पहिली हो निमित्तादित कार्य,
कार्यका भावीको अनुमान करनेवाला, अर्थका संदेहका हर्ता, अनेक प्रतिष्ठाकरि तद्र प चित्तवाला, सद्ब्रह्म विद्यावान्, पंडितनिमैं प्रवीण, अरु | जिनधर्म ही धर्म जाके, अरु गुरुका दिया है मंत्र जाकै, एक वखत भोजन करि रात्रि भोजनका सर्वथा त्यागी, निद्राके जीतवामें उद्यपवान, गई है वांछा जाकै, भक्तिमें तत्पर जनोंका दुःखकी हानिके अर्थि सिद्ध है मंत्र जाके, अरु विधिका ज्ञाता, अरु कुल क्रमकरि प्राप्त भई विद्याकरि प्राप्त भया उपसग नै परिहार करिवेकं समर्थ, सा यो प्राचार्य प्रतिष्ठा करायवेक् श्लाव्य है अन्यथा प्रतिष्ठा दोष देनेवारी होय है॥८१-८॥
शास्त्रानभिज्ञं कुलवावदूकं लोभानलप्लुष्टमशांतशीलं ।
परंपराशून्यमपार्थसाथ दुरात्त्यजंतु प्रणिधाननिष्ठाः ॥८६॥ शास्त्रनै नाहीं जानै, बहुत विकथा वा प्रलाप करै अरु लोभ रूप अग्नि करि दग्ध, अरु प्रशांतखभावी, अरु परंपराकरि होन, अरु अर्थको Mil नहीं जाननेवाला, ऐसा प्राचार्यकू प्रतिष्ठाकारक दूर हीत छोडो॥८६॥
प्रयोक्तृवाक्यं न हि मन्यमानो लोभादिसंचारकृतापमानः ।
प्राप्नोत्यनर्थं गुरुवाविरुद्ध इहान्यतः श्वभ्रमदभ्रदुःखं ॥ ८७ ॥ और जो प्रतिष्ठाकारक है सो लोभ मान आदिके वशीभूत होय अपमान करै अरु आचार्यका काय्यकूनी माने तो गुरुका वचनसे विरुद्ध Pा हुवा संता अनर्थकूप्राप्त होय, इह भवमें दुःख अरु परभवमें बहुत दुःखयुक्त नरककू पावे ॥७॥
R
अथ प्रतिष्ठामुख्यकारणेंद्रलक्षणं । अब प्रतिष्ठाका मुख्य कारण भूत इंद्रका वर्णन करिये है
इंद्रः शतक्रतुर्नेता विधिकृद् देशनायनः । यष्ट्रप्रतिनिधिविद्वान् एकार्थाः खल्विमे रवाः ॥८८ ॥
ALA
Jain Education
For Private & Personal Use Only
Jglibrary.org