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स्वरूप भावना
संसार के दर्शन - ईश्वर के सम्बन्ध में आज भी उलझे हुए हैं । अनन्त अनन्त काल से चिन्तन करता हुआ मानव मन ईश्वर के रूप और स्वरूप की घाटियों में आज भी भटक-भटक रहा है ।
विश्व के ईश्वर-सम्बन्धी विचारों में प्रायः परोक्षानुभूति ही मुख्य है । और वह सब की स्वतंत्र या अनुकृत होती है। अबतक के विचारों का अनुशीलन करने पर चार विचार सूत्र मेरे समक्ष आ रहे हैं ।
१. स्वामि-दास भावना
२. पिता-पुत्र भावना
३. सखा-भावना
४. स्वरूप भावना
एक दार्शनिक ने एक बार ईश्वर के विरह से व्याकुल होकर एक ऊंचे पर्वत पर चढ़कर ईश्वर को पुकारा
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