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ज्ञान का अधिकारी
६५ सत्य, ज्ञान एवं ईश्वर का निवास होता है। इसलिए यह उक्ति सत्य है-सरल हृदय ही भगवान का मंदिर है।
तथागत बुद्ध ने तो कहा है-जो कुटिल आचरण करता है वह चांडाल है और जो सरल हृदय होता है वही ब्राह्मण है, वही ज्ञान प्राप्त करने का सच्चा अधिकारी है।
सत्यकाम जाबाल के नाम से एक जाबालोपनिषद् प्रसिद्ध है। उसमें वर्णन है-एक बार ऋषि हरिद्र मत गौतम के आश्रम में एक भोलाभाला तेजस्वी किशोर आया। श्रद्धा के साथ ऋषि के चरणों में सिर झुकाकर बोला-'आचार्य ! मैं सत्य और ब्रह्म की खोज करने आया हूं । आप अनुकंपा कर मझे ब्रह्म विद्या दें। अंधे को चक्ष का दान दीजिए ऋषिवर !'
ऋषि ने गंभीर दृष्टि युवक की भोली सूरत पर डाली। उसकी निश्छल आँखों में अपूर्व निर्मलता थी। ऋषि ने पूछा-'वत्स ! तेरा गोत्र क्या है ? तेरे पिता कौन हैं ?'
किशोर को न अपने गोत्र का पता था, और न पिता का । वह सकुचाकर नीचा सिर किए खड़ा रहा । और दो क्षण रुककर उल्टे पाँव चल पड़ा।
कुछ समय बाद पुनः किगोर आश्रम में पहुँचा और ऋषि के समक्ष आकर बोला-'आचार्य ! मुझे न अपने गोत्र का ज्ञान है न अपने पिता का ! मेरी माँ भी नहीं
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