Book Title: Pratidhwani
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 205
________________ १८६ प्रतिध्वनि हाथों में हैं, लीजिए यह सेवक चरणों में हाजिर है, यह संपत्ति, यदि देश व धर्म की रक्षा के लिए काम नहीं आयेगों तो फिर यह मिट्टी है।। ___ उस अपार धनराशि को यों देश रक्षार्थ समर्पित होते देखकर राणा का हृदय खिल उठा। उनका अपराजित बल, साहस और शौर्य हुंकार उठा । भामाशाह को राणा ने छाती से लगा लिया-"इस मेवाड़भूमि की रक्षा का श्रेय मुझे नहीं, तुम्हें मिलेगा ! तुम्हीं मेवाड़ के उद्धारकर्ता हो।" भामाशाह के अपूर्व त्याग के सम्मान में उनके वंशजों का उदयपुर राज्य में सदा प्रथमस्थान रहा, और उस प्राचीन गौरव की स्मृति स्वरूप नगर में प्रत्येक उत्सव व नगरभोज के समय सर्वप्रथम तिलक उन्हीं के वंशजों का किया जाता रहा। ___ 'वीर विनोद' (पृ० २५१) के अनुसार भामाशाह का जन्म संवत् १६०४ आषाढ़ सुदी १० (ई० १५४७ जून २८) को, तथा मृत्यु संवत् १६५६ माघ शुक्ला ११ (ई० १६०० जनवरी २७) को हुआ। मृत्यु के एकदिन पूर्व उन्होंने कर्नल जेम्सटॉड के कथनानुसार भामाशाह ने राणा को जो धन भेंट किया वह इतना था कि २५ हजार सैनिकों का १२ वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। -देखिए टाड राजस्थान जि० १ पृ० २४६ Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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