Book Title: Pratidhwani
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 210
________________ मनुष्य की खोपड़ी विश्व में एक ऐसा महागर्त है जो एक नहीं, हजारहजार सुमेरु पर्वतों से भी नहीं भर सकता ? संसार भर का समस्त धन, धान्य और पदार्थ उस गर्त को पूरा नहीं कर सकते ? वह गर्त क्या है ? वह है मनुष्य का मन ! मानव का मस्तिष्क ! महान विचारक भगवान् महावीर ने मानव मन की इस दुष्पुरता को लक्ष्य करके कहा है सव्वं जगं जइ तुब्भं सव्वं वावि धणं भवे सव्वं पि ते अपज्जत्तं नेव ताणाय तं तव ! -उत्त० १४/३६ -यदि इस जगत का समस्त धन भी तुम्हें दे दिया जाय तब भी वह तुम्हारी इच्छाओं को पूरा करने में Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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