Book Title: Pratidhwani
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 213
________________ मन की बात एक कहावत है-दिल, दिल को पहचानता है। मन, मन की भाषा समझता है, मन में जो विचार लहरें उठती हैं, दूसरा मन उनका प्रतिबिम्ब पकड़ लेता है। यदि मन में भलाई की कल्पना उठ रही है, तो दूसरे का मन स्वयं उसके प्रति अनुरक्त हो जाता है। मन यदि किसी को धोखा देना चाहता है, तो दूसरा मन स्वयं उससे सावधान हो जाता है । इसीलिए तथागत ने कहा है. संकप्पा काम जायसि -महानिहस पालि ११ काम-संसार, संकल्प से ही पैदा होता है। जैसा संकल्प मन में उठता है, वैसा ही संसार बन जाता है। इसी बात को आरण्यक में यों बताया गया है १६४ Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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