Book Title: Pratidhwani
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 225
________________ २०६ प्रतिध्वनि उसे पूरा विश्वास हो गया, बस अब उसे प्रधानमंत्री बनने में तनिक भी देर नहीं होगी। बादशाह ने उस स्त्री से पूछा-"तो, तुम्हें हमारी बेगम बनना मंजूर है ?" नारी ने मुंह फेर कर कहा-"मैं एक विवाहित हिन्दू नारी हूँ, मेरे लिए मेरा पति ही बादशाह है, वही मेरा भगवान है । आप के इस बदमाश नौकर ने धोखा देकर जबर्दस्ती मुझे यहाँ उपस्थित किया है !" सुनते ही बादशाह की भृकुटियां तन गई-"उस्मान ! तुम ने एक बादशाह को शैतान समझ लिया ? एक विवाहित हिन्दू नारी कां धर्म नष्ट कर हमें भी अपने राजधर्म से भ्रष्ट करने का यह दुःसाहस किया तुमने !" उस्मान काँप उठा । बादशाह ने रक्षकों के बुलाया और आज्ञा दी-"इस गद्दार और प्रजाद्रोही को डालदो जेलखाने में ।" फिर उस स्त्री की ओर मुड़कर नम्रस्वर में बोला-"देवि ! क्षमा करना ! हमारे एक नालायक नौकर ने आपको बहुत तकलीफ दी। यदि आप कुमारी होती और हमें अपना पति स्वीकार करती तो हम अपने को भाग्यशाली समझते । पर, आप तो किसी की अमानत हैं । हम बाइज्जत आपको अपने घर पहुँचा देते है।" स्त्री का मुख मंडल प्रसत्रता से खिल उठा । उसने नीची आँखें झुकाए ही हाथ जोड़े-"जहाँपनाह ! आप प्रजा के पिता हैं । मुझ पर आपने इतनी कृपा की है तो Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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