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मनुष्य की खोपड़ी
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कहा- "राजन् ! यह निरर्थक युद्ध बंद करो ! क्या चाहते हो, बोलो ?"
राजा ने रोबीले स्वर में कहा - "तुम ने हमारी विशाल भूमि रोक रखी है, इसका 'कर' दो ।" ?"
"समुद्र से भी 'कर' चाहिए
"हां! अवश्य ! बिना कर दिए मेरे राज्य में कोई नहीं रह सकता !"
वरुणदेव ने समुद्र की गहराई में एक डुबकी लगाई और उत्ताल लहरों के साथ एक मानव खोपड़ी राजा के चरणों में आ गिरी। राजा आश्चर्यपूर्वक देख रहा था, तभी एक गंभीर ध्वनि उठी-" राजन् ! देख क्या रहे हो ! यह खोपड़ी ही मनुष्य को परेशान करती है, यह कभी नहीं भरती । यदि यह भर जाती और तृप्त हो जाती तो तुम सब कुछ पाकर भी समुद्र से कर मांगने नहीं आते ...!"
कराकांक्षी राजा चिंतन में डूब गया - " क्या सचमुच यह खोपड़ी नहीं भरती ''''?”
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