Book Title: Pratidhwani
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 222
________________ दृढ़ संकल्प २०३ " नन्ही गिलहरी ! यह क्या कर रही हो ?" - सिद्धार्थ पूछा । " इस झील को सुखा रही हूं" -- गिलहरी ने गर्व के साथ उत्तर दिया | ने "तुम से यह काम असंभव है, भले तुम हजार बरस जियो, और करोड़ों अरबों बार अपनी पूंछ पानी में डुबा कर भटको, परंतु तुम भील को कभी नहीं सुखा पाओगी!" " अच्छा ! तुम ऐसा मानते हो ? पर मैं तो किसी काम को असंभव नहीं मानती, जब तक जीऊंगी अपना काम करती रहूँगी । " - गिलहरी बोली । सिद्धार्थ के हृदय में एक प्रकाश फैल गया । मन की निर्बलता हवा हो गई, और एक वज्रसंकल्प लिया - "जनन-मर गयोरहृष्टपारो नाहं कपिलाह्वयं प्रवेष्टा" - जब तक बोधि प्राप्त कर जन्म-मरण का पार न देख लूं, मैं भी कपिलवस्तु की ओर नहीं लौटूंगा । और तप निरत होकर एकदिन बोधिलाभ कर सिद्धार्थ ने बुद्धत्व प्राप्त कर ही लिया । Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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