Book Title: Pratidhwani Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay View full book textPage 218
________________ सिद्धि या ईश्वर १६६ से मुझे ईश्वर लाभ न होकर केवल लोक मान्यता ही मिले, उनकी मुझे आवश्यकता नहीं है ।" वास्तव में वही विभूति श्रेष्ठ होती है जो ईश्वरानुभूति में सहायक हो, वही शक्ति उत्तम है, जो विरक्ति की प्रेरक हो । Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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