Book Title: Pratidhwani
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 217
________________ प्रतिध्वनि १६८ रहे हो ? क्या मणि खोटी है ?" हनुमान ने विनयपूर्वक कहा - "मात! मैं देख रहा हूँ इस बहुमूल्य मरिण में 'राम' है या नहीं ?" “यदि नहीं हो तो ''?'' आश्चर्यपूर्ण जिज्ञासा से सीता पूछा । ने "तो हनुमान के काम का नहीं ! हनुमान को तो वही वस्तु प्रिय है जिस में 'राम' हो ।" एकनिष्ठ भक्त हनुमान का उत्तर था । यह 'राम' ही श्रेय है । रत्न ( प्रेय) हनुमान (भक्त) को प्रिय नहीं होता, उसे तो राम ( श्र ेय) ही इष्ट होता है । ऐसा ही एक मधुर प्रसंग है स्वामी विवेकानंद के जीवन का । एक बार रामकृष्ण परमहंस ने श्री नरेन्द्रनाथ ( स्वामी विवेकानंद ) को अपने निकट बुलाकर कहा - "मैं तुम्हें अष्ट सिद्धि प्रदान करना चाहता हूं। तुझे बहुत बड़ेबड़े धर्म कार्य करने हैं, तुझे इनकी आवश्यकता होगी। बोल लेगा ?" एक मुहूर्त स्तब्ध होकर नरेन्द्रनाथ ने पूछा - "इससे क्या मुझे ईश्वर-लाभ होगा ?" "नहीं, इससे ईश्वर - लाभ तो नहीं होगा ।" गंभीर होकर परमहंस ने उत्तर दिया । अनासक्त भाव से नरेन्द्रनाथ बोले- "जिन शक्तियों Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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