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सिद्धि या ईश्वर
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से मुझे ईश्वर लाभ न होकर केवल लोक मान्यता ही मिले, उनकी मुझे आवश्यकता नहीं है ।"
वास्तव में वही विभूति श्रेष्ठ होती है जो ईश्वरानुभूति में सहायक हो, वही शक्ति उत्तम है, जो विरक्ति की प्रेरक हो ।
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