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धर्म का सार
उपनिषद् का एक वाक्य हैतस्मै तपो दमः कर्मेति प्रतिष्ठा
-केन उपनिषद् ४।८ आत्मज्ञान की प्रतिष्ठा-अर्थात् बुनियाद तीन बातों पर टिकी हुई है-तप, दम (इन्द्रियनिग्रह) और सत्कर्म ! ज्ञान इन्हीं तीन माध्यमों से प्रकाशित होना चाहिए और उन्हीं पर धर्म स्थिर रह सकता है । ___आज ज्ञान और कर्म को अलग-अलग देखने की वज्रभूल हो रही है। दैनिक जीवन व्यवहार जैसे कोई भिन्न विषय हो, और अध्यात्म कोई भिन्न वस्तु हो-ऐसा भ्रांतविश्वास लोगों में बन गया है। __ बौद्धग्रन्थ 'ध्यानपद्धति सार' में एक कहानी है। चीन में एक 'ताओ-बू' नामक संत का शिष्य था 'चुड्..
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