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धर्म का सार
२०१ सिन' एक दिन वह अपने गुरु के पास आकर बोला"जिस दिन से मैं आपके पास आया हूं, आपने मुझे धर्म का सार क्या है, इस विषय में कभी कुछ नहीं कहा।" ___ गुरु ने उत्तर दिया-“जब से तुम यहाँ आये हो, मैं निरंतर तुम्हें धर्म का सार बताता रहा हूँ । जब तुम चाय के प्याले को लेकर मेरे पास आए हो, तो मैं सदा उसे प्रेम और शांतिपूर्वक स्वीकार किए बिना नहीं रहा । जब तुमने हाथ जोड़कर आदर पूर्वक मुझे प्रणाम किया, तो मैं भी विनयपूर्वक अपना सिर झुकाये बिना नहीं रहा । अब तुम ही बताओ ! मैंने कब तुम्हें धर्म का उपदेश नहीं दिया। तुम्हारी भ्रांति यह है कि तुम धर्म को दैनिक जीवन के व्यवहारों से भिन्न उपदेश की वस्तु मानते हो, इसलिए इन धर्ममय व्यवहारों को धर्म की शिक्षा नहीं समझते, और मैंने प्रेम, सद्भाव, शांति और विनय में हीधर्म की शिक्षा दी है।"
शिष्य मौन होकर गुरु के जीवन में धर्म का सार देखने लगा, और प्रसन्न भाव से चरणों में झुक गया।
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