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प्रतिध्वनि
अपर्याप्त होगा और न मृत्यु से तुम्हें बचा सकेगा।
एक प्राचीन कथा है । एक देश में नया शासक सिंहासन पर बैठा । शासक बड़ा महत्वाकांक्षी और साम्राज्यप्रेमी था। उसने अपने बाहुबल से दूर-दूर तक के प्रदेशों पर विजयध्वज फहराया और लोगों से कर वसूल करके राजकोष को भरना शुरू किया। वह विजयध्वजा फहराता हुआ समुद्र के किनारे तक पहुंच गया।
राजा ने विशाल समुद्र को गर्जते हुए देखा । उसने अपने मंत्रियों से पूछा- "इस ने हमारे राज्य की बहुत बड़ी भूमि दबा रखी है, सैकड़ों योजन में अपना विस्तार कर रखा है, आखिर हमें यह क्या कुछ 'कर' देता है या नहीं ?"
मंत्री ने आश्चर्यपूर्वक नये राजा की ओर देखकर कहा-"महाराज ! समुद्र क्या 'कर' देगा? पर इससे हमारे राज्य को बहुत लाभ है !'
राजा-“लाभ की बात मैं नहीं पूछता, कुछ कर भी तो देना चाहिए। बिना कर लिए इसे हम अपने राज्य में नहीं रहने देंगे।" मंत्री मौन था । राजा ने सेना को आदेश दिया-"समुद्र के साथ युद्ध शुरू कर दो ।' राजा की आज्ञा से बारूद, गोले समुद्र की छाती पर वर्षाए गये, तोपों की गड़गड़ाहट से समुद्र का अन्तस्तल क्षुब्ध हो उठा।
बहुत दिनों की लड़ाई के बाद एकदिन समुद्र का देवता वरुण प्रकट हुआ। एक ओजस्वीवारणी में उसने
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