Book Title: Pratidhwani
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 193
________________ ६२ स्वामी बनाम रक्षक राष्ट्र की अपार संपत्ति जिन हाथों में सुरक्षित रहती है, उसे राजा कहा जाता है । राजा राष्ट्र की संपत्ति और समृद्धि का स्वामी नहीं, मुक्त उपभोक्ता भी नहीं, वह तो केवल उसका रक्षक मात्र है । महाभारत में राजा का आदर्श बताया है - जैसे भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ उनसे मधु ग्रहरण करता है, वैसे ही राजा भी प्रजा की रक्षा करता हुआ उसी की समृद्धि के लिए उससे कर रूप में धन ग्रहण करता है । यथा मधु समादत्ते रक्षन् पुष्पाणि षट्पदः । तद् वदर्थान् मनुष्येभ्य आदद्यादविहिंसया || - महाभारत ३४।१७ राजा के इसी आदर्श को गांधीजी ने 'ट्रस्टीशिप' का रूप दिया । भारतीय इतिहास में इस प्रकार के राजाओं की कमी नहीं, जिन्होंने राष्ट्र की संपत्ति का अपने स्वार्थ के लिए कभी भी दुरुपयोग नहीं किया, १७४ Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228