Book Title: Pratidhwani
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 201
________________ १८२ प्रतिध्वनि मिट्टी के कण-कण में हजारों सिकन्दर सोये पड़े हैं !" और सिकन्दर की लंबी चौड़ी हजारों छायाएं बुढिया के सामने नाच उठीं । बुढिया भयभीत हो उठी, उसकी मोह नींद खुली-“अरे ! दुनिया के जर्रे-जर्रे में सिकन्दर सोये पड़े हैं....मैं किस लिए बावली हो रही हूँ ?" Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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