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प्रतिध्वनि
मिट्टी के कण-कण में हजारों सिकन्दर सोये पड़े हैं !"
और सिकन्दर की लंबी चौड़ी हजारों छायाएं बुढिया के सामने नाच उठीं । बुढिया भयभीत हो उठी, उसकी मोह नींद खुली-“अरे ! दुनिया के जर्रे-जर्रे में सिकन्दर सोये पड़े हैं....मैं किस लिए बावली हो रही हूँ ?"
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