________________
स्वामी वनाम रक्षक
१७५
बल्कि उसे प्रजा की संपत्ति मानकर उसकी रक्षा ही करते रहे ।
दिल्ली के सिंहासन पर गुलामवंशीय बादशाह नासिरुद्दीन का शासन था । वह बड़ा नीतिनिष्ठ एवं पुरुषार्थी शासक था । पुस्तकें लिखने से जो आय होती, उसी से वह अपना जीवन निर्वाह करता । राजकोष से कभी एक पैसा उसने नहीं लिया । मुसलमान शासकों की रिवाज के विपरीत उसके एक ही पत्नी थी। नौकर कोई भी नहीं था, यहाँ तक कि रसोई भी स्वयं बेगम को अपने हाथ से बनानी पड़ती ।
एकबार रसोई बनाते समय बेगम का हाथ जल गया । बेगम ने बादशाह से कुछ दिन के लिए नौकरानी रखने की प्रार्थना की तो बादशाह ने उत्तर दिया
" राजकोष पर मेरा कोई अधिकार नहीं है, मेरे पास वह प्रजा की धरोहर मात्र है, उसमें से मैं अपने खर्च के लिए एक पैसा भी नहीं ले सकता, और मेरी स्वयं की कमाई इतनी नहीं है कि उसमें से नौकर रखने जितनी बचत हो सके, फिर तुम ही बताओ नौकरानी के लिए पैसा कहाँ से दोगी ?"
भारत जैसे विशाल देश के बादशाह की बेगम ने जब यह उत्तर सुना तो पता नहीं उसके मन में क्या प्रतिक्रिया हुई होगी पर इतिहास ने इस बादशाह के चरित्र को राष्ट्र का महान आदर्श स्वीकार कर लिया है ... ।
*
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org