________________
३२
ज्ञान का अधिकारी
उपनिषद् का एक वाक्य है
तेषामसौ विरजो ब्रह्मलोको न येषु जिह्ममनृतं न माया
- प्रश्न उपनिषद् १।१६
जिन में न कुटिलता है, न कपट है, और न असत्य है, वे ही वास्तव में शुद्ध, निर्मल ब्रह्मलोक को प्राप्त कर
सकते हैं ।
भगवान महावीर की वाणी में भी यही प्रतिध्वनि गंज रही है
धमो सुद्धस्स चिट्ठइ
-उत्तराध्ययन
शुद्ध एवं सरल हृदय में ही धर्म ठहरता है । जिसका अन्तःकरण सरल एवं निश्छल है, वहीं पवित्रता रहती है, और जहां पविमता होती है, वहीं
९४
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org