Book Title: Pratidhwani
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 190
________________ आपका नाम...? महाकवि कालिदास से धीर की परिभाषा पूछी गई तो चितनपूर्वक कवि की वाणी मुखर हो उठी विकारहेतौ सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि त एव धीराः विकार उत्पन्न होने की स्थिति सामने आने पर भी जिसका हृदय विकार-ग्रस्त नहीं बनता, वही वास्तव में धीर-वीर है। देखा जाता है, मनुष्य प्रायः अपनी उच्चता, महत्ता और तेजस्विता का प्रदर्शन तो बहुत करता है, बड़े-बड़े नाम और विशेषणों का आडम्बर लगाकर दुनियाँ में चकाचोंध पैदा करना चाहता है, पर जब अवसर आता है तो सारे प्रदर्शन और आडम्बर टांय-टांय फिस हो जाते हैं । विशेषणों के देवता के भीतर का राक्षस मुंह फाड़कर हुंकारता दिखाई देने लगता है। १७१ Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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