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प्रतिध्वनि
सहसा बादशाह की आँखें खुली - तेवर बदल कर गर्ज पड़ा - " चली जाओ ! हट जाओ ? मेरे सामने से ! तुम्हारा नापाक साया पड़ने से कहीं मैं भी बुजदिल न बन जाऊं । तुम्हें अपनी अस्मत का भी ख्याल नहीं रहा, कि एक गैर-मर्द के सामने यों नाचने तैयार होगई । अच्छा होता ऐसी बेशर्मी के बदले जहर खाकर मर जाती, तुम में से किसी एक में भी कुछ साहस और होसला होता तो सिरहाने रखा खंजर मेरे सीने में भोंक नहीं डालती ! ऐसी बुजदिल औरतों की औलाद क्या खाक राज करेगी ! चली जाओ सब ! मुझे औरतों का नाच नहीं देखना था, हौसला देखना था । "....
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नादिरशाह की भिड़की में नारी की दीनता और मातृत्व की दुर्बलता पर गहरी चोट थी ! ऐसी हीनमाता क्या वीर संतति को जन्म दे सकती है ?
वास्तव में वीर माता ही वीर संतान को जन्म दे सकती है । सच्चरित्र माता की प्रतिकृति होता है सच्चरित्र पुरुष !
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