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स्वतन्त्रता की झूठी पुकार
भगवान महावीर ने एकबार कहा
वाया वीरियमित्तण समासासेंति अप्पयं-जो मुँह मे धर्म, दया और ईश्वर का नाम लेते रहते हैं, किंतु कर्म में कोरे चिकने घड़े के साथी होते हैं वे केवल धर्म की बातों से झूठमूठ ही अपने को आश्वस्त करते जाते हैं । वे स्वयं को धोखा देते हैं। सचमुच ऐसे व्यक्ति वचनवीर होते हैं, कम वीर नहीं। ___ आज जिधर भी देखो, ये वचनवीर धर्म की पुकार लगाते सुनाई देगे । करुणा, सेवा और सदाचार का उदघोष करके उछलते दिखाई देंगे। देखने सुनने वाला सोचे-अहो ! कितने धार्मिक हैं ! कितने सदाचारी ! कितने भले ! पर वास्तव में वे जिस धर्म की बातें करते हैं, वह तो सिर्फ तोता रटंत हैं, धर्म क्या है यह प्रश्न उनके मन और जीवन को कभी छू तक भी नहीं जाता।
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