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४६ दिल का आईना-आँख
आँख-दिल का आईना है । भन की गहराई में जो भावों की रंग-विरंगी तरंगे उछलती हैं, आँखें उनका स्पष्ट प्रतिबिम्ब प्रकट कर देती हैं। लज्जास्पद बात देखते ही वे झुक जाती हैं, आनन्द का अनुभव करते ही चमक उठती हैं। रोष का उदय हुआ नहीं कि वे लाल अंगारे-सी हो कर जल उठती हैं, और करुणा का उद्रेक होते ही नम होकर बरस पड़ती हैं। जो बात वारणी नहीं प्रकट कर सकती, वह बात आँखें प्रकट कर देती हैं।
महाभारत में एक कथा है-व्यास जी के पुत्र शुकदेव बारह वर्ष के नहीं हुए कि तपस्या करने जंगल की ओर चल पड़े। वे निर्वस्त्र ही थे। मार्ग में एक तालाब पर अप्सराएं वस्त्र उतार कर नहा रहीं थी, शुकदेव को देखकर भी वैसे ही नहाती रहीं। शुकदेव के पीछे व्यास जी दौड़े जा रहे थे, उसे मनाने
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