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निस्पृहता का अभ्यास
मन में यदि तृष्णा नहीं हो, तो जगत् का कोई भी पदार्थ चाहे वह सोना हो या मिट्टी-एक समान प्रतीत होता है। समत्वभाव की यह साधना ही निस्पृहता की कसौटी है। इसीलिए साधक का यह विशेषण आगमों में आया हैसम लेटठ-कंचणो भिक्ख
-उत्त० ३५।१३ भिक्ष सोने में और पत्थर में समान बुद्धि रखता है ।
योगी की परिभाषा करते हुए यही बात गीता में दुहराई गई हैसमलोष्टाश्पकांचनः
-गीता १४।२४ रामकृष्ण परमहंस के जीवन की एक घटना है। जब वे साधना काल में ध्यान एवं भक्ति में लीन रहते थे तो
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