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दिल का आईना - आंख
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के लिए | व्यासजी को देखते ही अप्सराएं सकुचा कर वस्त्र पहनने लगीं । आश्चयपूर्वक व्यासजी ने कहा - अभीअभी मेरा तरुण पुत्र इधर से निकला तब तो तुम्हें बिल्कुल ही शर्म नहीं आई, और मुझ ब्रह्मज्ञानी वृद्ध को देखकर शर्म कर रही हो?
होते
अप्सराएं विनय के साथ बोली- महर्षे! शुकदेव तरुण हुए भी उसकी आँखों में एक अबोध शिशु की भांति भोलापन था, उसे देखकर हमें भान भी नहीं हुआ कि कोई पुरुष हमारे सामने से गुजर रहा है, किंतु आपकी आंखों में न वैसा भोलापन था न अबोधता ! आप को देखते ही हमारी आँखें शर्म से स्वयं झुक जाती हैं ।
सचमुच ही आँखें मनुष्य के हृदय का दर्पण होती हैं । आँखों में हृदय के भाव कितनी तीव्रता से स्पंदित होते हैं और मन व चरित्र पर कितना प्रभाव डालते है इसका उदाहरण है लन्दन से प्रकाशित 'प्रेडिक्शन' पत्रिका की इस रोचक घटना में
फ्रांस के 'सैनटी सर्मा' नामक गांव में एक जैनेट नामक लड़की जन्मांध थी। वह स्वभाव से बड़ी सरल, सुशील और मधुर थी । १६ वर्ष की अवस्था में एक जेटानी नामक डाक्टर ने उसका आप्रेशन कर 'आँख बैंक' पेरिस से दूसरी आँखें मंगवाकर लगा दीं ।
दूसरी आँख लगने के बाद लड़की
के स्वभाव में
विचित्र परिवर्तन हो गया। वह बड़ी क्रूर, झगड़ालू और
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