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प्रतिध्वनि
और स्वतंत्रता-स्वतंत्रता-चिल्लाता रहा ।
यात्री ने तोते की टांग पकड़ कर खींचकर बाहर निकाला, और मक्त आकाश में उड़ाकर एक सूख की सांस ली। उसकी अन्तरात्मा को शांति मिली, कि एक प्राणी को उसने स्वतंत्र कर दिया !
पर, वह अपने विस्तरे पर जाकर सो भी नहीं पाया था कि तोता उड़ता-उड़ता फिर पिंजड़े में घुस गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा-'स्वतंत्रता ! स्वतंत्रता ! स्वतंत्रता !"
यात्री ने सिर पर बल लेते हुए कहा-"झूठी है इसकी स्वतंत्रता की पुकार ! दंभी ! नींद हराम कर रहा है।"
आज के धर्मात्माओं की धर्म-पूकार भी क्या ऐसी नहीं है ?
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