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स्वतन्त्रता की झूठी पुकार
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एक बार स्वंतत्रता संग्राम का एक सेनांनी, किसी जेल से निकल कर अपने घर जा रहा था। रात को वह एक सराय में ठहरा । सराय के मालिक ने एक तोता पाल रखा था । जब स्वतंत्रता आंदोलन की हवाएं चारों ओर मचल रही थीं तो मालिक ने भी अपने तोते को 'स्वतंत्रता' की रट सिखाई।
सुबह पौ फटने से पहले ही तोते ने रट लगाई"स्वतंत्रता ! स्वतंत्रता ! स्वतंत्रता !" थके मांदे यात्री खर्राटे भर कर सो रहे थे । पर, वह जेल से आया हुआ स्वतंत्रता प्रेमी जाग रहा था । तोते की रट सुनी तो जेल जीवन की तीव्र पीड़ाए उसकी स्मृतियों में ताजी हो गई, तब वह भी तीव्र वेदना के साथ चिल्लाया करता था"स्वतंत्रता ! स्वतंत्रता !'' कितना प्यारा शब्द है ! और कितनी पीड़ाएं हैं बंदी जीवन में !
तोता फिर जोर से बोल उठा- “स्वतंत्रता ! स्वतंत्रता !" __ उस यात्री को तोते की पुकार असह्य हो उठी। उसे लगा-यह विचारा भोला पक्षी, इस पिंजड़े में पड़ा कराह रहा है और आजादी की पुकार कर रहा है । तभी पुनः तोते ने जोर से चीख मारी-स्वतंत्रता ! स्वतंत्रता ! अब तो यात्री जैसे अपनी ही अन्तर वेदना से तिलमिला उठा, वह पिंजड़े के पास आया, तोता जोर-जोर से स्वतंत्रता की पुकार लगा रहा था। उसने पिंजड़ा खोला, पर तोता पिंजड़े के सीखचों को पकड़ कर भीतर ही बैठा रहा,
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