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तू भी सो जातो मुस्कराते हुए फूलों को देखो, तुम्हें भी तृप्ति मिलेगी, आँखे भी प्रसन्न होंगी। पतझड़ की सूनी संध्या पर आँखें दौड़ाने से क्या लाभ होगा? गंदगी पर नजर टिकाने से तो अच्छा है, आँखें बंद ही रखी जाय !"
शेखसादी ने अपनी आत्म कथा में लिखा है- 'बचपन में वह भगवान की खूब भक्ति किया करता था। सुबह बहुत सबेरे उठकर नमाज पढ़ता और कुरान शरीफ का पाठ करने बैठ जाता।'
एक बार मस्जिद में अपने पिता के पास बैठकर कुरान-शरीफ का पाठ करने बैठा। बहुत रात बीत गई, आस - पास के सभी लोग नींद में खर्राटे भरने लग गए, पर सादी की आँखों में बल भी नहीं पड़ा। अपने पिता से कहा-'अब्बाजान ! देखिए ये लोग तो मुर्दो से भी बाजी मार ले गए। अल्लाह की फिक्र भी नहीं है इन्हें !'
पुत्र की बात सुनकर पिता ने दुःखी दिल से कहा'बेटा ! अच्छा होता इन लोगों की तरह तू भी सो जाता, तो दूसरों के दोष (ऐब) देखने के पाप से तो बच जाता।' अगर तेरी आँखें सचमुच भगवान को देखती होती, तो ओरों के दोष नहीं देख पाती। पर तू कुरान हाथ में लेकर भी शैतान की आँखें लिए बैठा है।' सादी ने कान पकड़ासचमुच देखना हो तो किसी की भलाई देखना चाहिए, बुराई नहीं।"
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