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संकड़ी गली
भगवान महावीर की एक दार्शनिक सूक्ति हैजेण सिया तेण णो सिया
- आचारांग ११२२४
तुम जिन वस्तुओं और भोगों से सुख की इच्छा रखते हो, वस्तुतः उनसे सुख नहीं मिल सकता । चूंकि भोग और सुख दोनों ही दो विपरीत मार्ग है। एक पूरब का एक पश्चिम का । धूप और छांह, आग और जल की तरह भोग और योग, लोकपरणा और आत्मषणा दो सर्वथा भिन्न तत्त्व है । जब मन में कामना होती है, तब विरक्ति नहीं आ सकती । जब मन में चाह होती है, तब निस्पृहता कैसी ? इसीलिए तो कहा है
जस्स णत्थि इमा जाई
अण्णा तस्स कओ सिया ?
- आचारांग १|४|११
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