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कोई रोगी नहीं मिला
आयुर्वेद के आचार्य वाग्भट्ट का एक वचन है-
'कोsam ? " - अर्थात् स्वस्थ नीरोग कौन है ? उत्तर
"
में कहा है- 'हितभुक् मितभुक् शाकभुक् चैव' - हितकारी एवं परिमित शाकाहार करने वाला नीरोग रहता है ।
महान् श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु ने स्वस्थ जीवन के उपाय बताते हुए एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है-
हियाहारा मियाहारा अप्पाहारा य जे नरा । न ते विज्जा तिगिच्छंति अप्पाणं ते तिगिच्छगा ॥ - ओघनियुक्ति ५७८
जो मनुष्य हिताहारी, मिताहारी एवं अल्पाहारी हैं, उन्हें किसी वैद्य के द्वार खटखटाने की जरूरत नहीं, वे स्वयं अपने वैद्य हैं, अपने चिकित्सक आप हैं ।
इसी संदर्भ में फारसी गद्य के जनक शेखसादी की एक कहानी मुझे याद आ रही है ।
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