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एक चित्र : तीन परछाई
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एक कवि ने एक गीत लिखा, जिसका भाव था 'मेरी प्रेयसि ! मैं तुम्हारी मिट्टी की देह को नहों, किन्तु आत्मा की अनन्त सुन्दरता को प्यार करता हूँ ।' ।
उस गीत को पढ़कर एक प्रणयाकुल कुरूप महिला उसके निकट आई, और बोली-'मैं तुम से असीम प्यार करती हूँ। तुम मेरे रूप को नहीं, किन्तु हृदय के सच्चे प्यार को परखो, क्योंकि तुम ने अपने गीत में आत्मा की सुन्दरता से प्यार करने की बात कही है, मुझे विश्वास है, तुम उसके अनुसार मेरे हृदय के पवित्र प्यार को समझोगे !'
कवि ने घृणा से उसकी ओर देखा और मुंह फेर कर कहा--'वह तो मेरी कविता की बात है।'
नारी ने तिरस्कार के साथ कहा--'ओ शब्दजाल फैलाने वाले पाखंडी ! समभी, तुम काव्य में कुछ और हो, वास्तव में कुछ और...!'
एक महात्मा जी ने विशाल भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा-'इस जीवन का सार है सेवा ! दान ! करुणा! जो कुछ अपने पास है, गरीबों की सेवा में लुटा दो । स्वयं भूखे रहकर भी अपनी रोटी गरीबों को दे डालो ! जो नर की सेवा करता है, वही नारायण की सेवा करता है।'
उपदेश खत्म होने के बाद भीड़ बिखर गई। एक बुढ़ा सर्दी से ठिटरता हुआ उपदेशक के सामने आया--
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