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प्रतिध्वनि
उसकी आँखें फटी रह गई। जैसे कोई वर्षों से बंद द्वार सहसा खुल गया हो,-"हैं ! क्या कह रही है ?, क्या वह सब नकली हैं ?, फिर असली स्वर्ण क्या है ? हमें वह नकली सोना लेकर क्या करना है जिसके रहने और जाने से उसके स्वामी को न हर्ष हो, और न शोक ! हमें भी तो वही सोना चाहिए जिसके कारण यह गृहस्वामिनी अपने को धन्य-धन्य मान रही है।" चोरों का सरदार वहीं डटा रहा, और भिक्ष की हृदय-बोधक वैराग्य कथा सुनने में लीन हो गया।
चोरों के सरदार का मन जाग उठा । जैसे सघन अंधकार में कोई दीप जल उठा हो। वह सिर पर पाँव रख कर दौड़ा-अपने साथियों के पास आया-"मित्रो ! यह सोना नकली है, इस की गठरिया मत बांधो ! आओ ! तुम्हें असली सोना दिखाऊं !"
चोरों ने सब स्वर्ण आभूषण ज्यों के त्यों वहीं डाल दिए । सरदार के पीछे-पीछे वे भिक्ष कोटिकर्ण श्रोण के निकट पहुंचे । वैराग्य के प्रकाश में उन्हें आत्मा के असली स्वर्ण का दर्शन मिला और वे धन्य-धन्य हो गए !
सच है-- जब आवै संतोष धन सब धन धलि समान ।
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