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बुद्धि को उलटिए
एक नाव समुद्र की बलखाती लहरों पर चल रही थी। उसमें अनेक यात्री बैठे थे। एक संत भी उस नाव से यात्रा कर रहा था। कुछ दुष्ट और शरारती व्यक्ति उस नाव में थे। वे परस्पर अट्टहास, निन्दा और अश्लील मजाकें कर रहे थे। संत ने उन्हें कहा-बन्धुओ ! बात करना है, तो कुछ ऐसी अच्छी बातें करो, जिन्हें सुनकर दूसरों को भी प्रसन्नता हो, तुम्हारी बातें सुनकर तो सभी यात्रियों के मन में लज्जा और घृणा उमड़ रही है।" ___ संत की शिक्षा ने जैसे सांप की पंछ पर पैर रख दिया । वे संत को गालियाँ देने लगे। संत मौन होकर प्रभु भजन में लीन हो गया। उन दुष्टों का क्रोध चोट खाये नाग की तरह दुगुने वेग से उफन पड़ा । संत के सिर पर वे जूते लगाने लगे, उस पर थूकने लगे। चूंसे और लातों से मरम्मत करने लगे । संत अपनी प्रार्थना में मस्त था । तभी आकाशवाणी हुई-संत! तुम कहो, तो इन दृष्टों
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