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प्रतिध्वनि
आत्मा के अनन्त अक्षय धन पर मनुष्य का मन आश्वस्त हो जाये।
धन आने का मद उसे होता है, जो धन की वास्तविकता से अपरिचित है। धन जाने का शोक भी उसे ही होता है, जो उसकी असलियत को नहीं जानता। वास्तव में जिसने अपने असली धन को पा लिया, उसे न धन का गर्व होता है, न चिंता और शोक !
बौद्ध साहित्य में भिक्षु कोटिकर्ण को कहानी बहुत ही प्रेरणादायी है। भिक्षु कोटि-कर्णश्रोण अपने गृहजीवन में बहुत ही धनी मानी था । उसके कानों के कुंडलों का मूल्य ही था एक करोड़ स्वर्ण मुद्रा । इसी कारण लोग उसे 'कोटिकर्ण' कहने लग गये । किंतु एक दिन उसे धन की निःसारता और अशरणता प्रतीत हुई और वह समस्त संपत्ति का त्याग कर भिक्ष बन गया।
भिक्ष के वैराग्य की कहानी लोगों की जबान पर नाच रही थी। एक बार वह एक नगरी में आया तो उसे देखने-सुनने को जनसमुद्र उमड़ पड़ा। हजारों हजार व्यक्ति उसकी सभा में दत्तचित्त होकर उसके वैराग्य की कहानी सुनने लगे । उसकी वाणी और जीवन-कथा इतनी मधुर और हृदयग्राही थी कि प्रातःकाल से संध्या हो चली थी पर सभा ज्यों की त्यों जमी रही।
उस सभा में एक कात्यायनी नामक धनाड्य गृहस्वामिनी भी बैठी थी । संध्या होने पर उसने दासी को
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