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प्रतिध्वनि नहीं करना । किंतु उस क्रोध को क्षमा से शांत कर देना। बे उस आग को पानी से बुझा डालते हैं। अविवेक को विवेक से विजय कर लेते हैं।
सिरीया के प्रसिद्ध विचारक खलील जिब्रान की एक कहानी है। किसी समय 'बुग्वार। नगर में एक अत्यंत दयाल और सद्गुणी राजकुमार था । उसकी उदारता की दूर-दूर तक ख्याति थी। प्रजा उससे बहुत प्यार करती थी।
उम नगर में एक दरिद्र व्यक्ति रहता था। जो फटे हाल होकर भी राजकुमार की बहुत निंदा करता था। वह रात दिन राजकुमार के सम्बन्ध में जहर उगलता रहता।
राजकुमार उस दरिद्र निंदक की बातें सुनता, पर वह कभी कद्र नहीं हुआ। उलटा उसके प्रति राजकुमार के मन में दया का भाव जगता ।
एक बार शरदपूर्णिमा के दिन राजकुमार का जन्मदिवस मनाया जा रहा था। नगर में चारों ओर चहलपहल, खुशियाँ थी। राजकुमार ने एक सेवक के हाथ निन्दक के घर पर तीन उपहार भेजे-'एक आटे की बोरी, एक साबुन की थैली और एक पुड़िया चीनी की।' सेवक ने निन्दक को ये उपहार देत हुए कहा-'राजकुमार ने अपने जन्मदिवस के उपलक्ष्य में आपको यह भेंट भेजी है, क्योंकि आप उनको हमेशा याद करते रहते हैं।'
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