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पाप पलट कर आता है
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किया था। एक बार बादशाह का एक गुलाम भाग गया। उसे पकड़ने के लिए सिपाही भेजे गए और गुलाम को पकड़ लिया गया।
राज्य का बजीर गुलाम से नाराज था, उसने यह अवसर देखा बदला लेने का। बादशाह से कहा-'जहाँपनाह ! इस दुष्ट को मार डालना चाहिए ताकि दूसरे गुलाम डरते रहें, और कोई फिर ऐसी शरारत करने की कभी हिम्मत न करें।'
गुलाम ने बजीर की सलाह सुनी। वह चतुर था। उसने बादशाह से प्रार्थना की-'आप जो भी हुक्म देंगे, वही इन्साफ होगा । मालिक की मर्जी के सामने गुलाम का कोई चारा भी नहीं । किन्तु मैंने आपका नमक खाया है, इसलिए आपकी भलाई के लिए एक प्रार्थना करने का अधिकार मानता हूं। मैं निरपराध हूं, निरपराध के खून का पाप आपके सिर पड़े और आगे भगवान के सामने स्वयं आपको इसका दण्ड भुगतना पड़े—यह ठीक नहीं होगा, इसलिए मुझे भले ही मार डालिए, किन्तु पहले मुझे दोषी बनाकर; ताकि निर्दोष व्यक्ति की हत्या का पाप आपके सिर पर न पड़े।'
वादशाह को गुलाम की बात पसंद आई । बोला'फिर तू ही बता, कैसे करना चाहिए ?'
गुलाम ने जबाव दिया---'मुझे आज्ञा दीजिए कि पहले मैं बजीर को मार डालू, और फिर इस अपराध के लिए आप मुझे मरवा डालिए । ताकि आपका यह कार्य संसार
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