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विजय का रहस्य
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२. मैंने विजित देश के शासकों के साथ सदा सम्मान पूर्ण व्यवहार किया और उनकी बहादुरी की प्रशंसा की ।
३. मैंने विजित प्रजा और शासक दोनों की सुखसुविधाओं का, उनके हार्दिक विश्वासों का और उनके जातीय गौरव का ध्यान रखा ।
इसलिए मुझे अपने अधीन विजित देशों से कभी कोई खतरा नहीं हुआ, वहाँ की प्रजा-राजा ने मेरा सहयोग किया । और आगे से आगे मेरा रास्ता साफ होता गया ! - गुलिस्ताँ में उद्धृत कथा से
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