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प्रतिध्वनि
वह आदमी आश्चर्य विमूढ़ हुआ बादशाह के मुंह को ताकने लगा। 'आपके कथन का आशय क्या है, मैं नहीं समझ पाया?' उसने कहा।
बादशाह ने उत्तर दिया- 'मुझे अपने शत्रु की मृत्यु से कोई खुशी और आश्चर्य नहीं है, क्योंकि मैं जानता हूँ, खुद मेरा जीवन भी हमेशा के लिए नहीं है। मेरे कानों में निरन्तर यह आवाज गूंजती रहती है-दूसरे के मरने पर क्या खुशी मनाता है, आखिर तुझे भी एक दिन मरना है, जब मैं अमर नहीं है, तो शत्रु के मरने पर खुशी कैसी और कैसा रंज मित्र के मरने पर ?'
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