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पृथ्वो गोल है ? पूरब की ओर बढ़ा आ रहा है। भोग-थक कर योग की छाया में आ रहा है। योग-अपनी ऊब मिटाने भोग की धूप में अंगड़ाई भर रहा है।
एक कहानी है । अफकार नामक एक प्राचीन नगर में दो विद्वान रहते थे। दोनों एक दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी थे, एक दूसरे के विचारों की मजाक उड़ाते थे। उनमें एक आस्तिक था, ईश्वर में विश्वास करता था और दूसरा नास्तिक-ईश्वर की सत्ता पर व्यंग कसता रहता था।
एक बार नगर के लोगों ने मिलकर उन दोनों की बहस करवाई, ईश्वर के अस्तित्व पर घंटों तक तर्क-वितर्क होते रहे । दोनों की ही दलीलें बड़ी वजनदार थीं !
उसी शाम को नास्तिक भगवान के मंदिर में गया अपना सिर झुकाकर पिछले पापों का पश्चात्ताप करने लगा-" प्रभो ! तुम्हारे अस्तित्व के इतने अकाट्य प्रमाण होते हुए भी मैंने उन्हें झुठलाया, तुम्हारी निन्दा की ! मुझे क्षमा कर देना !" ___ और उसी शाम को, आस्तिक विद्वान भी अपने घर पहुँचा। वह अपनी भूलों पर झंझला रहा था-'किसी भी तर्क से, प्रमाण से ईश्वर का अस्तित्व सिद्ध नहीं है । मैं व्यर्थ ही लोगों को छलता रहा हूँ, ये सब पुस्तके, धर्मग्रन्थ झूठे हैं ।'-बस उसने अपनी पुस्तकें एकत्र की और फंक डाली।
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