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अमुल्य श्लोक पर वे राज दरबार में आने को तैयार नहीं हैं।'
दूसरे दिन राजा स्वयं तीन लाख स्वर्णमुद्राएं लेकर भारवि की कुटिया पर पहुँचे । सम्मान पूर्वक स्वर्णमुद्राएं चरणों में रखते हुए कहा-'आपके इस श्लोक ने ही मेरे राज्य के एकमात्र उत्तराधिकारी एवं प्रिय रानी की हत्या होते-होते बचाई है ।' राजा ने कविवर भारवि को 'महाकवि' की उपाधि से विभूषित कर राज सम्मान दिया।
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