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अमूल्य श्लोक
पाँव लड़खड़ा रहे थे, पर करे भी क्या ? दुर्भाग्य से प्रताडित कवि चलते-चलते एक सरोवर के किनारे जा पहुंचे। भयंकर धूप से खिन्न हो शीतल हवा का सुखद-स्पर्श पाने वहाँ विश्राम करने लगे। सरोवर में खिले हुए कमलों को देखकर कवि हृदय विचार मग्न हो गया-'ये प्रफुल्ल कमल भी रात्रि में कुम्हला जाते हैं, और पुनः सूर्य उदय होने पर मुस्कराने लगते हैं। इस छोटे से जीवन क्रम में भी सुख-दुख आता रहता है, तो मैं फिर दुख व दरिद्रता से घबराकर आज बिना बुलाये ही राज दरबार में जाकर अपना स्वाभिमान क्यों गँवा रहा हूँ ?' ___ कवि का हृदय चिन्तन में डूब गया। वहीं संकल्पविकल्प में उलझे एक कमल पत्र पर उन्होंने पत्थर की नौंक से एक श्लोक लिखा-~सहसा विदधीत न क्रिया
मविवेकः परमापदां पदम् दृणुते ही विमृश्यकारिणं ।
___ गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः ॥ --कोई काम सहसा नहीं करना चाहिए । अविवेक ही तो बड़ी-बड़ी विपत्तियों का कारण है। सोच-विचार कर कार्य करने वाले के पास सम्पदाएं स्वयं चली आती हैं। ___ श्लोक लिखकर जैसे ही कमल पत्र को रखा कि उधर से महाराज स्वयं आखेट के लिए घूमते हए उधर आ निकले। कविवर ने ज्यों ही महाराज को देखा तुप
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