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अमूल्य श्लोक
संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध महाकाव्य 'किराताजुनीयम्' के प्रणेता कविवर भारवि प्रारंभ में अत्यंत दरिद्र थे। उनकी पत्नी सदा ही उनके काव्य पर व्यंग्य कसती रहती-'बाज आये ऐसे कवित्व और पांडित्य से ! घर में खाने को दाना नहीं, अंग ढकने को वस्त्र नहीं, छप्पर से पानी टपक रहा है और आप हैं कि काव्य लिखे जा रहे हैं। इससे तो अच्छा था कि काव्यों को जला डालते और राजा की नौकरी कर लेते ।'
पत्नी की व्यंग्योक्ति कविवर के हृदय को वेध गयी । वास्तव में घर की व पत्नी की दुर्दशा से स्वयं कवि अत्यंत दुखी थे। पत्नी के ताने पर उनका हृदय भीतरही-भीतर रो पड़ा, और अब अपने झूठे स्वाभिमान को तिलांजलि दे, अपना काव्य एक वस्त्र में लपेट कर कविवर राज दरबार की ओर चल पड़े। दीन वेश में राजसभा की ओर जाते उनका स्वाभिमान कचोट रहा था,
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